शनिवार, 26 मार्च 2011

वह खुली हँसी

देखते ही देखते  यह  क्या हो गया

हमारा प्यारा बचपन कहाँ खो गया

रास आती नहीं अब तो ये जिन्दगी

वो उन्मुक्त जीवन कहाँ सो गया

कहाँ वो खुला आसमां था

कहाँ ये तनावों भरी जिन्दगी

लगता है फिर से ना हँस पाएंगे

बचपन वाली वह खुली हँसी. (कृष्ण धर शर्मा)

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